लंका पर विजय प्राप्त करके भगवान राम कार्तिक अमावस्या के दिन अपना चौदह वर्षों का वनवास समाप्त करके अयोध्या वापस आये थे। उस दिन अयोध्यावासियों ने भगवान राम के वापस आने की खुशी में रात में पूरी अयोध्या में घी के दीपक जलाये थे। कालान्तर में यह दिन हमलोग दीपावली के रूप में मनाने लगे। हमलोग इस दिन दीपक जलाते हैं एवं आतिशबाजी करते हैं। धीरे-धीरे दीपक का स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया। दीपक जलने से बरसात में जो कीट-पतंग पैदा हो जाते थे। वह मर जाते थे। लेकिन आज झालरों के कारण ऎसा नहीं हो पा रहा है। इस दिन हम काफ़ी मात्रा में आतिशबाजी करते हैं। जिससे वायु एवं ध्वनि प्रदूषण होता है। पटाखों की तेज आवाज शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इससे तनाव, बहरापन एवं अवसाद जैसी बीमारियां होती हैं। इसके कारण होने वाले वायु प्रदूषण से अस्थमा एवं श्वास रोगों के मरीजों की स्थिति खतरनाक हो जाती है। आतिशबाजी से हमारे देश का करोड़ो रुपया एक दिन में जल जाता है। जिस देश में धनाभाव के कारण हजारों बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते है और हजारो लोगो को भूखे सोना पडता है। जरा सोचे क्या ऎसा करना मानवता के नाते सही है? क्या एक परिपक्व नागरिक होने के कारण हमारा ऎसा करना सही है? तो फ़िर आइये हमलोग संकल्प ले कि इस दिन हम आतिशबाजी नहीं करके हम पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचायेगें एवं इस तरह देश के धन को बरबाद नहीं करेगें।
यदि हम आतिशबाजी पर खर्च होने वाले धन को गरीबो के लिये काम करने वाले किसी स्वयं सेवी संस्था को गरीबो के सहायतार्थ या स्वयं गरीबो में दान करे। तो यह आपकी अनोखी एवं वास्तविक आतिशबाजी होगी।