बुधवार, 3 नवंबर 2010

जरा सोचे आतिशबाजी करने से पहले...

कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त करके अपना चौदह वर्षों का वनवास समाप्त करके अयोध्या वापस आये थे. उस दिन अयोध्यावासियों ने रात में पूरी अयोध्या में घी के दीपक जलाये थे. कालान्तर में यह दिन हमलोग दीपावली के रूप में मनाने लगे. हमलोग इस दिन दीपक जलाते हैं एवं आतिशबाजी करते हैं. धीरे-धीरे दीपक का स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया. दीपक जलने से बरसात में जो कीट-पतंग पैदा हो जाते थे. वह मर जाते थे. लेकिन आज झालरों के कारण ऎसा नहीं हो पा रहा है. इस दिन हम काफ़ी मात्रा में आतिशबाजी करते हैं. जिससे वायु एवं ध्वनि प्रदूषण होता है. पटाखों की तेज आवाज शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिये हानिकार है. इससे तनाव, बहरापन एवं अवसाद जैसी बीमारियां होती हैं. इसके कारण होने वाले वायु प्रदुषण से अस्थमा एवं श्वास रोगों के मरीजों की स्थिति खतरनाक हो जाती है. आतिशबाजी से हमारे देश का करोडो रुपया एक दिन में जल जाता है. जिस देश में धनाभाव के कारण हजारों बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते है और हजारो लोगो को भूखे सोना पडता है. जरा सोचे क्या हमारे द्वारा ऎसा करना मानवता के नाते सही है? क्या एक परिपक्व नागरिक होने के कारण हमारा ऎसा करना सही है? तो फ़िर आइये हमलोग संकल्प ले कि इस दिन हम आतिशबाजी नहीं करके हम पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचायेगें एवं इस तरह देश के धन को बरबाद नहीं करेगें. यदि आप आतिशबाजी पर धन खर्च करने के बजाय उस धन को गरीबो के लिये काम करने वाली किसी स्वयं सेवी संस्था को गरीबो के सहायतार्थ या स्वयं गरीबो
में दान कर दे. तो यह आपकी अनोखी एवं वास्तविक आतिशबाजी होगी.